ब्लॉग लेखन की प्रेरणा अपने भाई से मिली . कुछ सुन सा रखा था के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सही मायने में अब जाकर मिली है ब्लॉग कल्चर के ज़रिये . देखता हूँ सही ही है ।
मुज़फ्फ़रपुर(बिहार) में रेलवे कॉलनी में बचपन जिया , भरपूर जिया ........ आपस में झगड़ती बेलों का लबादा ओढ़े जवान बरगद के अन्दर लुकाछिप्पी खेलना हो या फ़िर नीम की टहनी से झूलकर आसपड़ोस का हवाई नज़ारा लेना.............एक बार एक काले कौवे ने अच्छी ख़बर ली थी मेरी . उसका घोंसला उसी नीम पर था और ये पढने के बाद कि कोयल उसके घोंसले में अपना अंडा चुपके से रख जाती है मैं थोड़ी छानबीन के मूड में था.....
साथी संगी भी कमाल के मिले .एक विशेष बात थी के कोई भी एक दूसरे का नाम बिना "सिंघ" लगाये नही लेता था मसलन- पप्पू सिंघ , गूंजा सिंघ ..और तो और हमने बचपन में ही नारी समता का पाठ पढ़ते हुए लड़कियों के नाम के साथ भी पूरी इमानदारी से सिंघ टाइटल का प्रयोग किया था .............हमारे दल में सभी बराबर थे ..
खेल कूद और शैतानियाँ कई बार ज़्यादा हो जाती थीं और तब याद आने लगता था पापा की डांट और कभी कभी होने वाली पिटाई .....डाँट खाते वक्त हमें कई उपाधियों से नवाजा जाता था जिसमें दो हमारे साथ नत्थी से हो गए थे ; एक तो था "चोट्टा" और दूसरा था "कल्लर"......यही कल्लर की उपाधि ब्लॉग के नाम में इस्तेमाल की है .
कल्लर रेलवे स्टेशन के आसपास रहने वाले बेघरबार लोग थे .पार्सल ऑफिस के आहाते में अपना टेंट लगा लेते थे.... हर वो मुमकिन वस्तु जिससे टेंट का कोई कोना बन सके वहाँ इस्तेमाल हो जाती थी. पुरानी जंग लगी लावारिस जीप कभी एक दिवार का काम दे जाती तो एक ओर खड़ी टूटी-फूटी 'यज्दी' मोटरबाइक उनके सामानों को टांगने की अलगनी....वे और उनके बच्चे कूड़ा बीनते थे और अक्सर पार्सल होने वाले सामानों में से हाथ मार लिया करते थे . कभी चाय की पत्ती किसी कार्टन में से सुराख कर निकाल लिया कभी पॉल्ट्री के रंग लगे चूजों पर हाथ साफ ...मतलब कि हमारे आसपास रहने वालों में उन कल्लरों से जब किसी की तुलना हो तब समझ लीजिये किअभिभावक अपनी सन्तान को नरक का भय ही दिखा रहा होता था .मेरी कारगुजारियों के चलते ये उपाधि मेरे साथ चस्पा सी हो गई और आज अपने इस ब्लॉग के लिए उसी उपाधि का उपयोग कर रहा हूँ..मक्सिम गोर्की रचित 'मेरा बचपन' की सी गर्माहट ये नाम मुझमे भर जाता है.....
आप सबका इस कल्लर के टेंट में स्वागत है .
1 comment:
अद्भुत...कल्लर सिंह के टेंट में तो बारंबार दरबार लगाना होगा...कबाड़ के भेस में छिपे रत्नों को तराशकर टेंट को जगमगाते रहो...शुभकामनाएँ
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