Monday, December 31, 2007

खुमार

नए साऽऽल का पहलाऽ जाऽम आपके नाम HAPPY NEW YEAR.... भई जाम तो उठाया नही कभी अपने हाथों से पर नए साल के आने पर जो नशा छाता है उसकी खुमारी में हम भी डोले हैं कई बार॥ पूरी दुनिया में सबको एक साथ ( टाईम जोन्स की याद न दिलाएँ ) एक नई चीज़ मिल जाती है । कोई मातम न हो या किसी की देनदारी न हो तो सभी खुश भी होते हैं . सुरा-साधक अपनी साधना का प्रसाद पाकर मतवाले हुए जाते हैं और गली के कुत्ते उनके सुर में सुर मिलाते है अलबत्ता डरे हुए कि पगला है...

आज जगन्नथवा की बड़ी याद आ रही है . भारी पियक्कड़ ! मेरे दोस्त का कहना था कि अगर इसके देह में सीरिंज भोंका जाए तो खून के बदले शराब निकलेगा !! साले का बदन शराब से भभकता है हर समय ... यकीन मानिये उसको देखते ही आप सीरिंज वाली बात को मान लेते .पूरी शराब की बोतल लगता था . इकहरा लिजलिजा बदन , बोतल के जैसी पतली होती गरदन तिसपर ढ़क्कननुमा खोपडी !! रास्ते में मिलता तो पूरे ज़ोर से आवाज़ लगाता ' परनाम मालिक '.. माली हालत तो कमजोर थी ही शराबखोरी ने और भी कंगला बना दिया था . एक दिन हिलता-काँपता मेरे घर आया और घिघियाने लगा कि घर में खाए लगी न हई..मेहरारू (बीवी) चावल लावे लगी जे पइसा देलइ हल ओकरा के पी गेली....अब समझ न आता था कि इसे गालियाँ दूँ,धकियाऊँ या सिर तोड़ दूँ॥पर इतनी ज़ोर की हँसी आई कि मैं भी हैरान रह गया अपने पर । एक दस का नोट आगे किया और धमकाया कि चावल खरीद के सीधे घर जो..

पियक्कड़ भारी था पर हराम की नही पीता था . मेरा दोस्त उससे गाहे-बगाहे काम लेता रहता था . काम क्या ख़ाक करता शरीर में ताकत तो थी नही , दारू नही चढाता था तो थरथराता था खड़े-खड़े ..... मैंने भी दो-एक बार घर में झाड़-जंजाल साफ़ करने उसे बुलवा भेजा था । आया था पूरे जोश से, खुरपी-कुदाल तलब कर लग गया काम पर . मैंने भी देखा कि भई मेहनती है फुर्ती से काम करता है . पर घंटा लगते न लगते लगा काँपने और बोला कि अब न होतवा हमरा से , कुछ दे दीं त तनी बगले से ताडी पी के आवी लिक तनी तागद आ जाई त अपने के काम करब.......मन तो हुआ कि साले की गरदन मरोड़ दूँ पर खून का घूँट पी कर रह गया और पाँच का सिक्का उसकी तरफ किया .........................

आप उसके लौटकर आने का इंतज़ार तो नही कर रहे न.....

शराबियों से मुझे चिढ है , जो संयत रहते है उनसे शिकायत नही पर बहक कर दूसरो पर आफत लाने वाले वालों पर शैतान का कोप लानत करने में मुझे कोई गुरेज नही . मैंने कई बार पियक्कड़ों को साइकल , मोटरबाइक चलाकर दूसरों को धक्का मारते देखा है जिनमे कुछ गम्भीर रूप से घायल भी हो गए . मुहल्ले में एक अच्छे पद पर स्थापित श्रीमान अक्सर पिनक में अपने परिवार वालों को पीट डाला करते थे , अस्पताल जाकर पट्टियाँ करवाने की भी नौबत आई कई बार.. दिहाड़ी पर काम करने वाले शाम को नकदी हाथ में आते ही अड्डे पर पहुँचकर गला तर करते हैं . पूछने पर बताया कि कमरतोड़ मेहनत के बाद दारू उनके लिए संजीवनी बूटी है....मुझे नही मालूम के इसमें कितनी सच्चाई है पर हर शराबी के पास अपना एक बहाना ज़रूर होता है . देवदास पारो के ग़म में पीने लगा तो शराबी के " विक्की बाबू " को अपने बाप से शिकायत थी , मेरा दोस्त आर्मी का लाइफ़स्टाईल है कहकर पीता है...
हमारे देवता भी सोमरस के चाहने वाले थे , पौराणिक साधकों ने सोमरस पिला-पिलाकर कई बार अपना मतलब इन देवताओं से निकलवाया है . तंत्र-साधना के पांच-मकारों में मदिरा भी एक है....मुग़लों में कई भारी अफीमची थे .कई शहजादे अफीम और सुरा की भेंट चढ़ गए ..विदेशी शासक भी सुरा के कद्रदान थे इतने कि हमारी मसाला फिल्मों में बच रहा ऐंग्लो-इंडियन अभी भी दारू की बाटली हाथ में लिए फिरता है . सुन रक्खा है कि लेखक,सम्पादक,खबरनवीस,समाजसेवी,राजनेता और बाबा लोग भी ख़ूब पीते हैं ...अल्लाह खैर करे॥

नशा और अपराध पर कई सेमिनार होते हैं और नए शोध भी आते रहते हैं हमेशा .किसी को इससे इनकार नही कि नशा आपराधिक गतिविधियों में उत्प्रेरक का काम करता है . हमारे ही मुहल्ले में आजकल स्मैकियरों की तादाद बढ़ गई है ये १३-१४ साल के छोटे गरीब लड़के हैं जो एक कोने में छिपकर तो कभी-कभी सरेआम नशा खींचते हैं..पता चला कि इन्हे नशे की लत लगवाकर इनसे चोरियाँ करवाई जाती हैं !!! नशा न कर पाने की हालत में ये इतने उग्र और बेबस हो जाते हैं कि कुछ भी करते हैं. एक बार एक लड़का ईंट का अद्धा लिए चाहरदिवारी के लिए खडे एक ऐसे पिलर पर लगातार चोट कर रहा था जिसे छेनियाँ न तोड़ पाएँ पर नशे का जुनून उस पर एस कदर हावी था कि उसने चोट कर-करके पिलर को फोड़ ही डाला और उसमे कि छड़ निकालकर कबाडी की दुकान की ओर मज़े से चल पड़ा.... सुना है कि बिहार , यूपी , से पंजाब आदि राज्यों में जाने वाले मजदूरों को ऐसे ही नशे का आदी बनाकर काम लेते हैं इनके ठेकेदार ......

जगन्नथवा मर गया पिछले साल । अन्तिम बार जब देखा था उसे तो एक गुलाबी रंग का पुराना नाईट-सूट , जिसे मेरे दोस्त ने उसे दे दिया था , को पहनकर अपने यार-दोस्तों में जमा हुआ अपने पीले दाँत निपोड़े हँस रहा था और होश में था . मुझे देखकर थोड़ा उचका और ज़ोर लगाकर बोला ' परनाम मालिक '... उसकी आवाज़ अबतक कानों में है...

मेरा दोस्त तो खूब पीने लगा है पर जगन्नथवा की याद मुझे शायद पियक्कड़ न होने दे॥भगवान उसकी आत्मा को शान्ति दे.....

नए साल में आपके लिए भी यही मनोकामना और अभिलाषा कि आपका जीवन सुरमय हो सुरामय नही....वैसे एक-दो बार बहाने चल सकते हैं कोई गिला करे तो गा उठियेगा - नशेऽ में कौन नही हैऽऽ मुझे बतावो ज़रा..

5 comments:

इरफ़ान said...

नए साल में आप और भी अधिक ऊर्जा और कल्पनाशीलता के साथ ब्लॉगलेखन में जुटें, शुभकामनाएँ.

www.tooteehueebikhreehuee.blogspot.com
ramrotiaaloo@gmail.com

विनीत उत्पल said...

नया वर्ष आपके लिए शुभ और मंगलमय हो।

Anonymous said...

आपकी रचनाएँ दिल को छूती हैं, ऐसी ही सरलता के साथ लिखे, नव वर्ष में आपकी और भी अच्छी
रचनाएँ हमें पढनें को मिले , असीम शुभकामनाएं !!

अपने से बाहर said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

कल्लर भाई,

नववर्ष पर इससे सुंदर और क्या हो सकता था कि उन जगन्नाथों की सुध ली जाए जो हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं, बस या तो हम देखना नहीं चाहते या देखते हुए डर लगता है, या देखते हैं तो भी वो मन को झकझोरता नहीं...जगन्नाथ तो जग में हर ओर हैं, बस वे नाथ नहीं बन पाते...नववर्ष में कल्लर के टेन्ट से कबाड़ बरसते रहें...जगन्नाथों के लिए वे रत्न से कम नहीं...